चोटी की पकड़–21

"इस तरह से मिलने एक ही महकमे के आदमी आते हैं। 


नाम वह कभी नहीं बताएँगे, सिर्फ काम बतला जाएँगे।

 कर दिया तो नेकनामी, न किया या धोखा दिया तो इसकी सज़ा है। समझिए-हम-पुली...।"

"आप जो काम बतला जाएँगे, उसका हासिल मालूम करने के लिए आप ही आएँगे या कोई दूसरे?"

"हमीं आयँगे; मुमकिन, और आदमी हमारे साथ हों। बाद को, गिरह पड़ गई तो बड़े साहब भी आ सकते हैं।"

सेक्रेट्री उठकर अपने कमरे में गया। 

दिन, तारीख, मास, साल, समय और पुली के नाम से कही हुई उस आदमी की कुल बातें उसकी शक्ल के वर्णन के साथ लिख लीं। 

एक सिपाही को बुलाकर कहा, "तुम दो-तीन छिपे तौर से इस आदमी का हाल मालूम करो, पूरा पता ला सके तो इनाम मिलेगा। 

आदमी बरामदे में बैठा है। कोई छेड़ न करना।"

फिर बाईजी के पास खबर भेजी कि जरूरी काम से मिलना है। एजाज ने बुला भेजा। सिकत्तर साहब गए।

 उसने मेज़ की बगलवाली कुर्सी पर बैठाला। 

सिकत्तर बैठकर एक-एक करके कुल बातें संक्षेप में सुना गए।

एजाज कुछ देर तक सोचती रही। 

फिर पूरे इतमीनान से कहा, "सिकत्तर साहब, एक राज और लीजिए।

 कहिए, वह बातचीत करने के लिए तैयार हैं अगर उस बातचीत में राजा साहब का नाम नहीं आया।

 गुलाबबाड़ी में एक मेज़ और दो कुर्सियाँ डलवा दीजिए।"

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